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राजधानी से 100 किलोमीटर के रेडियस में सिमटा रहा झारखंड पर्यटन का 90% विकास

Kumar  Gaurav

Ranchi  :  झारखंड का कुल क्षेत्रफल 79714 वर्ग किलोमीटर है. राज्य पर्यटन की दृष्टिकोण से असीम संभावनाओं वाला क्षेत्र है. मुख्यमंत्री के भाषणों में भी कई पर्यटन स्थलों को विश्वस्तर का बनाने का जिक्र है. उन्होंने विभिन्न समारोह में खुद कहा है कि इटखोरी, रजरप्पा, पतरातू, देवघर को अंतराष्ट्रीय स्तर का पर्यटन केंद्र बनायेंगे.

पर पर्यटन के क्षेत्र में पिछले पांच साल में जो काम हुआ उसका 90 प्रतिशत रांची के आसपास या रांची से 100 किलोमिटर की परिधि में ही हुआ है. आप यह खुद समझ सकते हैं कि जिस राज्य का क्षेत्रफल 79714 वर्ग किलोमीटर हो, वहां सिर्फ 100 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में ही पर्यटन पर काम हुआ है.

जबकि राज्य में हर जिले में कई महत्वपूर्ण स्थल हैं जहां पर्यटक लगातार जाते हैं.

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शहर के आसपास के फॉल का भी नहीं हो सका सही विकास

शहर के आसपास 40 किलोमीटर के रेडियस में करीब चार से पांच जलप्रपात मौजूद हैं. दशम, जोन्हा, हुंडरु, सीता फॉल सहित कई पर्यटक स्थल मौजूद हैं. जहां अक्टूबर से मार्च के बीच हजारों की संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं यहां भी सरकार ने पर्यटन कि विकास के नाम पर सिर्फ कोरम ही पूरा किया है.

ना तो सुरक्षा के इंतजाम हैं और ना ही बारिश से बचने का कोई शेड. हां इंट्री शुल्क जरूर लागू कर दिया गया है. पर शाम होने पर लाइटिंग की भी व्यवस्था भी नहीं है. सरकार ने पतरातु, रॉक गार्डन और टैगोर हील पर जरूर काम किया है.

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 विश्वस्तरीय पर्यटन केंद्र बनाने की थी बात

मुख्यमंत्री रघुवर दास ने 18 दिसंबर 2017 को इटखोरी महोत्सव के दौरान इटखोरी को 500 करोड़ की लागत से विश्वस्तरीय पर्यटन स्थल बनाने की बात कही थी. जिसमें विश्व का सबसे ऊंचा 30 मीटर का बौद्ध प्रेयर हॉल बनाने की बात कही थी. साथ ही भद्रकाली घाट और बौद्ध घाट के निर्माण की भी बात थी.

वहीं सीएम ने कालेश्वरी पहाड़ पर 1.6 किलोमीटर के क्षेत्र में रोपवे निर्माण की बात कही थी. पर दो साल पूरा हो जाने के बाद भी वादे सिर्फ वादे ही रह गये. जमीन पर काम अभी तक नहीं दिख सका है.

दिउड़ी मंदिर डीपीआर बनने तक रह गया विकास

दिउड़ी मंदिर रांची से महज 40 किलोमीटर के दायरे में ही है. मंदिर में उड़ीसा, बंगाल और झारखंड के अधिकतर पर्यटक आते हैं. महेंद्र सिंह धोनी के लगातार आनेजाने से यह मंदिर राष्ट्रीय स्तर में भी फेमस हो चुका है. सरकार ने इसे विकसित करने की भी घोषणा की.

इसके लिए 1.6 एकड़ में गेस्ट हाउस निर्माण की बात कही है. धर्मशाला और विवाह मंडप भी बनाया जाना था. इसके अलावा 50 वाहनों के लिए पार्किंग और दुकान निर्माण की भी योजना थी. कला संस्कृति विभाग ने इसको लेकर सहमति दे दी. डीपीआर जिला प्रशासन को बनाना था. बात डीपीआर के आगे नहीं बढ़ सकी.

नहीं बन सका जैन सर्किट, शक्ति सर्किट और बौद्ध सर्किट

जुलाई 2015 में डबल इंजन की सरकार ने कहा था कि राज्य मे तीन सर्किट का निर्माण होगा. जैन सर्किट, बौद्ध सर्किट और शक्ति सर्किट. पर एक भी सर्किट नहीं बन सका. जैन सर्किट के तहत पारसनाथ को अंतराष्ट्रीय स्तर का बनाया जाना था. इसे बिहार के पावापूरी से जोड़ा जाता.

इसके तहत पारसनाथ में ठहरने की व्यवस्था, ट्रेकिंग की व्यवस्था और वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी निर्माण की बात थी. इसके अलावा शक्ति सर्किट के तहत रजरप्पा को तारापीठ से जोड़ा जाना था. इस योजना के तहत पर्यटक शक्तिपीठों के दर्शन कर सकते थे.

जिसमें बैद्यनाथ मंदिर, वासुकीनाथ मंदिर और दुमका के मलूटी मंदिर को जोड़ा जाता. साथ ही दिउड़ी को भी जोड़ा जाना था.

तोपचांची झील को संवारने की बात कही गयी थी

तोपचांची झील को राज्य सरकार ने विकसित करने की बात कही थी. लेकिन पर्यटन के विकास के लिए बनी लिस्ट में इसे शामिल नहीं किया गया है. जबकि यह बहुत ही सुंदर है. तोपचांची झील करीब आठ किमी के रेडियस में फैला हुआ है. पारसनाथ पहाड़ की तलहटी में बसे इस झील में ढोलकट्टा, ललकी नाला सहित करीब 18 चैनल से पानी आता है.

वर्ष 1914 में बने इस झील को कोयलांचल के लोगों को बीमारी से बचाने के लिए अंग्रेजों ने बनाया था. माडा के हाथों में आने के बाद से इसकी स्थिति गड़बड़ाने लगी. बीस वर्ष में इस झील की हालत लगातार दयनीय होते गयी. झारखंड राज्य के गठन के बाद लगा कि इस झील को संवारा जायेगा.

लेकिन ऐसा नहीं हो सका. गेस्ट हाउस से लेकर झील के अंदर तक की स्थिति पूरी तरह से दयनीय हो चुकी है.

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