गडकरी जी, अच्छी सड़क के लिये तिहरा टैक्स तो ठीक पर आपके टोल वाले लूट रहे हैं पब्लिक को

Surjit Singh
केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने 16 जुलाई को लोकसभा में कहा कि यदि अच्छी सड़क चाहिए, अच्छी सेवाएं चाहिए, तो टोल चुकाना पड़ेगा.
जिंदगी भर टोल बंद नहीं हो सकता. यदि अच्छी सेवाएं चाहिए, तो कीमत चुकानी पड़ेगी. क्योंकि पर्याप्त फंड नहीं है. नितिन गडकरी ने यह भी कहा कि अगले चार माह में सभी टोल को फास्ट ट्रैक किया जायेगा.
गडकरी जी ठीक कह रहे हैं. अच्छी सेवाएं चाहिए तो कीमत चुकानी ही पड़ेगी. पर, कितनी. अच्छी सड़क देने के नाम पर सरकार पहले से ही दो टैक्स ले रही है.
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वाहन खरीदने के बाद रजिस्ट्रेशन के वक्त और वाहन को चलाने के लिये पेट्रोल-डीजल खरीदते वक्त (रोड सेस के रुप में). कोई बात नहीं अच्छी सड़क के नाम पर टोल भी वसूल लीजिये. वह भी प्रति किमी करीब 1.20 रुपये की दर से. जनता यह भी बर्दाश्त करने को तैयार है.
पर, क्या सच इतना ही है. आप टोल भी वसूल रहे हैं और खराब सड़क भी दे रहे हैं. विश्वास ना हो तो जीटी रोड में बनारस से धनबाद की सड़क पर कितने बड़े-बड़े गड्ढे हैं, कितनी जगहों पर सड़कें टूटी हुईं है, गिनती करवा लीजिये.
अधिकांश पुलों पर सड़क औसत दर्जे की छोड़िये, गड्ढे ही गड्ढ़े हैं. बनारस से धनबाद तक में 100 से अधिक जगह पर सड़क को लकवा मार गया है. जब स्पीड में चल रही गाड़ियां वहां से गुजरती हैं, तो एक-एक फीट ऊपर उछल जाती है.
सच है, अच्छी सड़क चाहिए, तो कीमत देनी पड़ेगी. टोल के रुप में विभाग कीमत भी वसूल रही है. पर, तब क्या हो जब आपके टोल वाले दिन-दहाड़े पब्लिक को लूटने लगे.
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करीब तीन साल पहले आप रांची आये थे. हिन्दी दैनिक प्रभात खबर के कार्यक्रम में मैंने आपको जानकारी दी थी कि रांची से रामगढ़ जाने वाला गाड़ी मालिक 25 किमी अच्छी सड़क पर चल कर भी 80 किमी का टोल देने को मजबूर हैं.
क्यों सरकार औऱ विभाग ऐसी व्यवस्था नहीं करता, जिससे जो जितनी किमी चले, उतना ही टैक्स दे. यही हाल पटना से फतुहा जाने वाले का है.
करीब 15 किमी अच्छी सड़क पर चलने वाले वाहन चालक को 60 किमी का टोल टैक्स देना पड़ता है. आपने वादा किया था छह माह में इसे ठीक कर लिया जायेगा. अब तक वही हाल है. विश्वास नहीं हो तो प्रभात खबर के फेसबुक पेज पर जाकर आप अपने वायदे को याद कर सकते हैं. क्या यह संस्थागत रुप से होने वाली लूट नहीं है.
ऐसा नहीं है कि हर राज्य में यही स्थिति है. हैदराबाद में ऐसी स्थिति नहीं है. वहां आप जितने किमी का सफर तय करते हैं, उतने ही किमी का टोल देना पड़ता है.
क्योंकि वहां की सरकार ने सिस्टम बनाया है. पर, झारखंड-बिहार की सरकार सिस्टम बनाना ही नहीं चाहती.
क्या यह संभव नहीं है कि कोई गाड़ी चालक टोल वाले रोड पर जहां से प्रवेश करे वहां उसे एक परचा मिले और जहां से टोल रोड छोड़े वहां टोल टैक्स जमा करे. हो सकता है.
हैदराबाद में यही व्यवस्था है भी. पर, इससे टोल ठेकेदार को मैन पावर बढ़ाने होगा. खर्च बढ़ेगा. इसलिये वह राज्यों की सरकार को खुश रखता है. अफसरों व नेताओं को पास देता है और टोल के नाम पर लूट की छूट हासिल करता है.
बात फास्ट ट्रैक की करें, तो यह अच्छी योजना है. लोगों को टोल प्लाजा पर रुकना नहीं पड़ेगा. पर, यह भी आधा सच है. इस योजना के तहत अब तक जमीनी परेशानियों को नजरअंदाज किया गया है. सरकार ने करीब दो साल पहले इसकी शुरुआत की.
करोड़ों लोगों ने गाड़ियों में फास्ट ट्रैक का टैग लगवाया. करोड़ों लोगों ने उसमें 500-1000 रुपये डाले. लेकिन जब टोल पर जाते हैं, तो वहां लगी मशीन फास्ट टैग को रीड ही नहीं करती है. कभी इंटरनेट काम नहीं करता.
लोग थक-हार कर कैश में ही पेमेंट करते हैं. इस योजना में सवाल यह है कि आखिर फास्ट टैग में जो पब्लिक का पैसा जमा हो गया, वह तो फंस गया है. उसमें तो इंटरेस्ट आता ही होगा ना. यह लाभ कौन ले रहा है.
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