रक्षाबंधनः रेशम की कच्ची डोर से बंधा भाई-बहन के अटूट प्यार का प्रतीक वाला त्योहार

News Wing Desk: रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार जिसमें रेशम की डोर से भाई-बहन का प्यार बंधा होता है. ये केवल एक पर्व नहीं बल्कि एक ऐसी भावना है, जो रेशम की कच्ची- डोरी के जरिए भाई-बहन के प्यार को हमेशा-हमेशा के लिए संजोकर रखती है.
पूरे देश में गुरुवार को रक्षाबंधन का त्योहार उल्लास के साथ मनाया जा रहा है. भाई-बहन के पावन पर्व के दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांध उसकी लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती है. जबकि भाई बहनों की रक्षा का संकल्प करता है.
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वैसे तो हिन्दू के धर्म के बड़े त्यो्हारों में से रक्षा-बंधन एक है. लेकिन न सिर्फ हिन्दू बल्कि अन्य धर्म के लोग भी पूरे जोश के साथ इस त्योहार को मनाते हैं. क्योंकि ये पर्व भाई-बहन के अटूट रिश्ते , बेइंतहां प्याेर, त्यायग और समर्पण को दर्शाता है.
बहनें जहां अपने भाई की कलाई पर राखी या रक्षा सूत्र बांधकर उसके लिए मंगल कामना करती हैं. वहीं, भाई अपनी प्याारी बहना को बदले में भेंट या उपहार देकर हमेशा उसकी रक्षा करने का वचन देते हैं.
कब मनाते हैं रक्षाबंधन
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, भाई-बहन के प्यार वाला ये पर्व हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. ग्रगोरियन कैलेंडर के अुनसार यह त्योपहार हर साल अगस्त के महीने में आता है.
इस बार रक्षाबंधन 15 अगस्त को है. ऐसे में हम भारतीयों के लिए दोहरे उत्सव का वक्त है. 15 अगस्तर के दिन ही स्वडतंत्रता दिवस की 72वीं वर्षगांठ भी है. और रक्षाबंधन के साथ-साथ पूरा देश आजादी के जश्न में डूबा है.
इस बार ये त्योहार गुरुवार को है इसलिए इसका महत्व और ज्यादा बढ़ गया है. साथ ही इस दिन भद्र काल नहीं है और न ही किसी तरह का कोई ग्रहण है. ऐसे में इस बार रक्षाबंधन शुभ संयोग वाला और सौभाग्यशाली है.
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रक्षाबंधन का महत्व
रक्षाबंधन हिन्दू् धर्म के बड़े त्योोहारों में से एक है. खासतौर से उत्तर भारत में इसका खास महत्व है. दीपावली या होली की तरह ही इसे पूरे हर्षोल्लाेस के साथ मनाया जाता है. यह हिन्दूभ धर्म के उन त्योूहारों में शामिल है जिसे पुरातन काल से ही मनाया जा रहा है.
भाई बहन के अटूट बंधन और असीमित प्रेम का प्रतीक है रक्षा बंधन. देश के कई हिस्सोंं में रक्षाबंधन का त्योहार अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है.
महाराष्ट्र में सावन पूर्णिमा के दिन जल देवता वरुण की पूजा की जाती है. और इसे सलोनो नाम से भी जाना जाता है. माना जाता है कि इस दिन पवित्र नदी में स्ना न करने के बाद सूर्य को अर्घ्यर देने से सभी पापों का नाश हो जाता है. इस दिन पंडित और ब्राह्मण पुरानी जनेऊ का त्यासग कर नई जनेऊ पहनते हैं.