क्या सरकार लिखेगी – कि सासंदों के मुफ्त खाने की राशि का वहन जनता करती है


एक वरिष्ठ आदमी की व्यथा
मैं अपने महान देश भारत का एक वरिष्ठ नागरिक हूं, जहां अपने से बड़ों का सम्मान और सम्मान करना निश्चित रूप से एक परंपरा और संस्कृति है. हाल ही में मैंने ट्रेन का टिकट खरीदा.
ट्रेन टिकट की लागत पर वरिष्ठ नागरिकों को दी जाने वाली लागू रियायत दी गई थी. मुझे बहुत निराशा हुई, जब मैंने टिकट पर एक टिप्पणी देखी: ”क्या आप जानते हैं कि आपका 43% किराया देश के आम नागरिकों द्वारा वहन किया जाता है?
यह एक रियायत देने और फिर वरिष्ठ नागरिकों के चेहरे पर जूता मारकर जलील करने जैसा है. मेरा सुझाव है कि भारत सरकार इस रियायत को वापस ले ले, हम बुरा नहीं मानेंगे. लेकिन क्या सरकार उन सभी विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्तियों जैसे सांसदों को वे जब संसद की लगभग मुफ्त कैंटीन में भोजन करते हैं ” तो बिल पर लिखने की हिम्मत करेगी” कि क्या आप जानते हैं कि आपके भोजन में शामिल सब्सिडी राशि देश के आम नागरिकों द्वारा वहन की जाती है”?
क्या सरकार सभी सांसदों और विधायकों और अन्य सरकारी अधिकारियों को लिखकर देगी, कि जब भी वे ट्रेन और हवाई जहाज से यात्रा करने के लिए उन्हें मुफ्त पास देते हैं, तो पास पर यह लिखेगी कि आपकी मुफ्त यात्रा की लागत देश के आम नागरिकों द्वारा वहन की जाती है. क्या सरकार उपरोक्त सभी विशेषाधिकार प्राप्त नागरिकों के लिए वही लिखने पर विचार करेगी, जिस पर उनके जीवन काल में इतनी सब्सिडी दी जाती है?
क्या सरकार सभी पूर्व सांसदों, विधायकों, मंत्रियों आदि को पेंशन देते समय यही सन्देश लिखेगी ? बहुत सारे मुद्दे हैं. हालांकि मुझे यकीन है कि कोई भी सरकारी संस्थान अपनी राय नहीं देगा, न ही सरकार इस पर ध्यान देगी. यह हमारे अपने देश में 1000 साल की गुलामी का परिणाम है.
ये भारत ही है, जहां क्षेत्र का लोकसभा सदस्य और विधायक हर विकास कार्य पर बड़े शान से बोर्ड लगा देता है कि यह विकास कार्य MP/MLA द्वारा सांसद/विधायक फंड से बड़े अथक प्रयास से करवाया जा रहा है. जबकि होना ये चाहिए कि यह विकास कार्य जनता से एकत्रित करों से करवाया जा रहा है.
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